New Property Right Rule: बेटे और बेटी को पिता की संपत्ति में क्या मिलेगा? नए नियमों से परिवार में हलचल

भारत में संपत्ति के अधिकारों को लेकर कानून में समय-समय पर बदलाव होते रहे हैं। हाल ही में पिता की संपत्ति में बेटे और बेटी के अधिकारों को लेकर कुछ महत्वपूर्ण बदलाव किए गए हैं। इन नए नियमों का मकसद महिलाओं को भी पुरुषों के बराबर अधिकार देना है।

इस लेख में हम पिता की संपत्ति में बेटे और बेटी के अधिकारों से जुड़े नए नियमों के बारे में विस्तार से जानेंगे। हम यह भी समझेंगे कि ये नियम पैतृक और स्वयं अर्जित संपत्ति पर कैसे लागू होते हैं। साथ ही यह भी जानेंगे कि इन नियमों का क्या प्रभाव पड़ेगा।

पिता की संपत्ति में बेटे और बेटी के अधिकार: नए नियम

New Property Right Rule

बेटी को बराबर का अधिकारबेटी को पिता की पैतृक संपत्ति में बेटे के बराबर का अधिकार मिला है
जन्म से ही अधिकारबेटी को जन्म से ही पैतृक संपत्ति में सहदायक (कोपार्सनर) का दर्जा मिला है
शादी का प्रभावबेटी की शादी के बाद भी उसके अधिकार बरकरार रहेंगे
पूर्वव्यापी प्रभाव2005 से पहले जन्मी बेटियों को भी यह अधिकार मिलेगा
विभाजन का अधिकारबेटी पैतृक संपत्ति के विभाजन की मांग कर सकती है
स्वयं अर्जित संपत्तिस्वयं अर्जित संपत्ति पर पिता का पूरा अधिकार रहेगा
वसीयत का प्रावधानपिता वसीयत के जरिए अपनी इच्छा से संपत्ति बांट सकते हैं
न्यायिक व्याख्याकई न्यायिक फैसलों ने इन अधिकारों को और स्पष्ट किया है

पैतृक संपत्ति में बेटी के अधिकार

2005 के संशोधन के बाद बेटी को पिता की पैतृक संपत्ति में बेटे के बराबर का अधिकार मिल गया है। अब बेटी भी जन्म से ही पैतृक संपत्ति में सहदायक (कोपार्सनर) मानी जाएगी। इसका मतलब है कि बेटी को भी पैतृक संपत्ति में बराबर का हिस्सा मिलेगा।

यह नियम पूर्वव्यापी प्रभाव से लागू होगा। यानी 2005 से पहले जन्मी बेटियों को भी यह अधिकार मिलेगा, बशर्ते उनके पिता 9 सितंबर 2005 के बाद जीवित थे। सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक फैसले में यह भी स्पष्ट किया है कि बेटी की शादी के बाद भी उसके अधिकार बरकरार रहेंगे।

स्वयं अर्जित संपत्ति पर नियम

स्वयं अर्जित संपत्ति के मामले में पिता को पूरा अधिकार है कि वह अपनी इच्छा से उसे किसी को भी दे सकते हैं। वह चाहें तो वसीयत के जरिए अपनी स्वयं अर्जित संपत्ति को अपनी मर्जी से बांट सकते हैं।

हालांकि अगर पिता बिना वसीयत के गुजर जाते हैं, तो उनकी स्वयं अर्जित संपत्ति भी बेटे और बेटी में बराबर बंटेगी। इसलिए अगर पिता चाहते हैं कि उनकी स्वयं अर्जित संपत्ति किसी खास व्यक्ति को मिले, तो उन्हें वसीयत बनाना जरूरी है।

बेटे के अधिकार

पैतृक संपत्ति के मामले में बेटे के अधिकार पहले की तरह ही बने रहेंगे। बेटा जन्म से ही पैतृक संपत्ति में सहदायक माना जाता है। उसे पैतृक संपत्ति में बराबर का हिस्सा मिलेगा।

बेटा अपने पिता के जीवनकाल में भी पैतृक संपत्ति के विभाजन की मांग कर सकता है। हालांकि स्वयं अर्जित संपत्ति के मामले में बेटे का कोई कानूनी अधिकार नहीं है, जब तक कि पिता उसे वसीयत में न दें।

न्यायिक व्याख्याएं

सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट के कई फैसलों ने इन नए नियमों की व्याख्या की है। 2020 में सुप्रीम कोर्ट ने विनीता शर्मा बनाम राकेश शर्मा केस में फैसला दिया कि बेटी को पैतृक संपत्ति में बराबर का अधिकार मिलेगा, चाहे उसके पिता 2005 में जीवित थे या नहीं।

इसी तरह दिल्ली हाई कोर्ट ने 2016 में फैसला दिया कि बालिग बेटे का पिता की स्वयं अर्जित संपत्ति पर कोई कानूनी अधिकार नहीं है। वह सिर्फ अपने माता-पिता की मर्जी से ही वहां रह सकता है।

नए नियमों का प्रभाव

इन नए नियमों का सबसे बड़ा प्रभाव यह हुआ है कि अब बेटियों को भी पैतृक संपत्ति में बराबर का हिस्सा मिलेगा। इससे महिला सशक्तिकरण को बढ़ावा मिलेगा। साथ ही परिवारों में बेटे-बेटी के बीच भेदभाव कम होगा।

हालांकि इन नियमों से कुछ नए विवाद भी पैदा हो सकते हैं। कई परिवारों में बेटियों को उनका हिस्सा देने को लेकर मतभेद हो सकते हैं। इसलिए जरूरी है कि लोग इन नियमों को अच्छी तरह समझें और उनका पालन करें।

निष्कर्ष

पिता की संपत्ति में बेटे और बेटी के अधिकारों को लेकर नए नियम एक सकारात्मक कदम हैं। इनसे महिलाओं को आर्थिक रूप से मजबूत बनने में मदद मिलेगी। हालांकि इन नियमों का सही क्रियान्वयन बहुत जरूरी है।

परिवारों को चाहिए कि वे इन नियमों को समझें और उनका पालन करें। अगर कोई विवाद हो तो कानूनी सलाह लेकर उसका समाधान करें। इससे परिवार में शांति बनी रहेगी और सभी को उनका हक मिल सकेगा।

Disclaimer: यह लेख सिर्फ सामान्य जानकारी के लिए है। किसी कानूनी मामले में इसे आधार न बनाएं। हर मामला अलग हो सकता है, इसलिए किसी विशेषज्ञ की सलाह जरूर लें। संपत्ति के मामलों में हमेशा दस्तावेजों की जांच करें और कानूनी प्रक्रिया का पालन करें।

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